नवरात्रि के चौथे दिन ऐसे करें मां कुष्मांडा की पूजा, मिलेगा मनचाहा फल

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन माता दुर्गा के ‘कुष्मांडा’ रूप की पूजा की जाती है। मंगलवार होने के नाते भीड़ अधिक दिखी। भक्तों ने मां विध्यवासिनी के कुष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन कर मंगलकामना की। मां विध्यवासिनी का दर्शन करने के बाद विंध्य पर्वत पर विराजमान मां अष्टभुजा व मां काली का दर्शन-पूजन कर त्रिकोण परिक्रमा की।
भोर की मंगला आरती के बाद गर्भगृह का कपाट खुलते ही या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: के साथ मां विध्यवासिनी की जयकारे से विंध्यधाम गुंजायमान हो उठा।
मान्यता के अनुसार देवी कूष्मांडा ने ही इस सृष्टि की रचना की थी। सृष्टि निर्माता होने के कारण इन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है। मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां के हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा, जप माला है। मां कुष्माडां का वाहन सिंह है। नवरात्रि में देवी की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि देवी कुष्मांडा में सूर्य के समान तेज है।
मां कुष्मांडा की पूजा का महत्व
देवी कुष्मांडा रोग-संताप दूर कर आरोग्यता का वरदान देती हैं। मां की पूजा से आयु, यश और बल भी प्राप्त होता है। देवी कुष्माण्डा की पूजा गृहस्थ जीवन में रहने वालों को जरूर करना चाहिए। मां की आराधना से संतान और दांपत्य सुख का भी वरदान मिलता है। मां कुष्माण्डा की पूजा से सभी प्रकार के कष्टों का अंत होता है। देवी कूष्मांडा सूर्य को भी दिशा और ऊर्जा प्रदान करने का काम करती हैं। जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर होता है उन्हें देवी कूष्मांडा की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए।