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आखिर इन 20 सालों में तालिबान इतना मजबूत कैसे हो गया ?

तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- ज्ञानार्थी अर्थात छात्र। ये ऐसे छात्र होते है जो इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधारा पर यकीन करते हैं और उसे बढ़ावा देने के लिए आंदोलन करते हैं। तालिबान इस्लामिक कट्टरपंथी राजनीतिक आंदोलन है इसे तालेबान के नाम से भी जाना जाता है एवं यह एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आंदोलन भी है जिसकी शुरुआत 1994 में दक्षिणी अफगानिस्तान में हुई थी। इसकी सदस्यता पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है। 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता थे। उन्हीने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित किया था। तालिबान आंदोलन को सिर्फ 3 राष्ट्र हैं जिन्होंने मान्यता दी थी- सऊदी अरब,पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात अफगानिस्तान को आधुनिक युग में भी पाषाण युग लाने के लिए तालिबान ही जिम्मेदार है।

शीत युद्ध के दौरान अफगानिस्तान सोवियत संघ और अमेरिका के लिए युद्ध का मैदान बन गया। शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ, अफगानिस्तान में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखा था लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद अमेरिका ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली उसने वहां स्थित तालिबानी आंदोलन को पीछे से समर्थन देता रहा। 9/11 के हमले के बाद अमेरिका को इस कट्टर विचारधारा की भनक महसूस हुई, फिर अमेरिका भी इसके खिलाफ जंग में उतर गया। लेकिन काबुल-कंधार जैसे बड़े शहरों के बाद पहाड़ी और कबायली इलाकों में तालिबान को खत्म करने में अमेरिकी और मित्र देशों की सेनाओं को पिछले 20 साल में भी सफलता नहीं मिल पाई। खासकर पाकिस्तान से सटे इलाकों में तालिबान को पाकिस्तान के समर्थन में जिंदा रखा और आज अमेरिकी सैनिकों की वापसी कि साथ ही तालिबान ने फिर से उठा लिया है और तेजी से पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है।

1990 की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय माना जाता है। इस दौर में सोवियत सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी। पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली थीं। इस आंदोलन का उद्देश्य था कि लोगों को धार्मिक मदरसों में जाना चाहिए। इन मदरसों का खर्च सऊदी अरब द्वारा दिया जाता था। 1996 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के अधिकतर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। 2001 के अफ़ग़ानिस्तान युद्ध के बाद यह लुप्तप्राय हो गया था पर 2004 के बाद इसने अपना गतिविधियाँ दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में बढ़ाई हैं। फरवरी 2009 में इसने पाकिस्तान की उत्तर-पश्चिमी सरहद के करीब स्वात घाटी में पाकिस्तान सरकार के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत वे लोगों को मारना बंद करेंगे और इसके बदले उन्हें शरीयत के अनुसार काम करने की छूट मिलेगी।

आखिर 2001 के बाद से इन 20 सालों में तालिबान इतना मजबूत कैसे हो गया?


दरअसल साल 2001 से शुरू हुई अमेरिकी और मित्र सेनाओं की कार्यवाही में पहले तालिबान सिर्फ पहाड़ी इलाकों की ओर धकेला गया। लेकिन 2012 में अमेरिका और मित्र सेनाओं के बीच पर हमले के बाद से तालिबान का फिर से उभरना शुरू हुआ। वर्ष 2015 में तालिबान ने सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण कुंडुज के इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया और अपनी वापसी का मजबूत संकेत भी देना शुरू किया। यह ऐसा वक्त था जब अमेरिका में सेनाओं की वापसी की मांग जोर पकड़ रही थी। इससे अफगानिस्तान से अमेरिका की रूचि भी कम होती गई। इस कारण तालिबान का आत्मविश्वास बढ़ता गया। इसी के साथ पाकिस्तानी आतंकी संगठनों ने पाकिस्तान की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी के माध्यम से पाकिस्तान से सटे इलाकों में तालिबान ने अपना मजबूत बेस तैयार कर लिया। अमेरिका लगातार कोशिश करता रहा कि अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस कर लिया जाए और इसी के तहत उसने 2020 में तालिबान से शांति वार्ता शुरू की और दोहा में कई राउंड की बातचीत भी हुई। एक तरफ तालिबानी सीधे वार्ता का रास्ता पकड़ा तो दूसरी ओर बड़े शहरों और सैन्य बेस पर हमले के छोटे-छोटे इलाकों पर कब्जे की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया।

अप्रैल 2021 के अमेरिकी राष्ट्रपति के ऐलान के बाद तालिबान ने मोर्चा खोल दिया और और 90 हजार से अधिक लड़ाकों को तालिबान ने तीन लाख से अधिक अफगान फौजियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया हैं। यहां तक कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ़ गनी और उनके प्रमुख सहयोगियों, तालिबान से लड़ रहे प्रमुख विरोधी कमांडर अब्दुल रशीद और कई वॉरलॉर्ड्स को तजाकिस्तान और ईरान में शरण लेने पर मजबूर कर दिया।

तालिबानी इलाकों में शरीयत का उलंघन करने पर बहुत ही क्रूर सजा दी जाती है। एक सर्वे के मुताबिक, 97 फीसदी अफगानी महिलाएं डिप्रेशन की शिकार हैं।

  • घर में गर्ल्स स्कूल चलाने वाली महिलाओं को उनके पति, बच्चों और छात्रों के सामने गोली मार दी जाती है।
  • प्रेमी के साथ भागने वाली महिलाओं को भीड़ में पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था।
  • गलती से बुर्का से पैर दिख जाने पर कई अधेड़ उम्र की महिलाओं को पीटा जाता था।
  • पुरुष डॉक्टर्स द्वारा महिला रोगी के चेकअप पर पाबंदी से कई महिलाएं मौत के मुंह में चली गई।
  • कई महिलाओं को घर में बंदी बनाकर रखा जाता था। इसके कारण महिलाओं में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ने लगे

WRITER – ABHAY KUMAR MISHRA

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