क्या है गुरु पूर्णिमा और क्यों होता है इतना गुरु पूर्णिमा का महत्व
Guru Purnima 2021

भारतवर्ष में गुरुओं का सम्मान आदिकाल से होता आ रहा है। भारत में गुरुओं का स्थान माता-पिता के समान माना जाता है क्योंकि गुरु ही है जो अपने शिष्य को जीवन में सही मार्ग की ओर ले जाता है। पौराणिक काल से ही ऐसी बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती है जिससे यह पता चलता है कि किसी व्यक्ति को महान बनाने में गुरु का विशेष योगदान रहता है।
गुरु पूर्णिमा एक विशेष दिन होता है। हिंदू धर्म ग्रंथों में यह माना जाता है कि इस दिन महान गुरु महर्षि वेदव्यास जिन्होंने ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और 18 पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना की है, का जन्म हुआ था। शास्त्रों में आषाढ़ी पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का जन्म समय माना गया है। इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई दिन शनिवार को मनाया जा रहा है। इस दिन सभी शिष्य अपने अपने गुरुओं से आशीर्वाद लेते हैं और उन्होंने अब तक जो भी दिया है तो उसके लिए धन्यवाद करते हैं।

महत्व:- जिस प्रकार जल अथवा सूर्य की किरणों के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है उसी प्रकार गुरु के बिना एक शिष्य के जीवन का विकास असंभव होता है।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में शिष्य जब गुरुके आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे।
रामायण से लेकर महाभारत तक गुरु का स्थान सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च रहा है गुरु की महत्ता को देखते हुए ही महान संत कबीर दास जी ने लिखा है-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय।।
अर्थात गुरु का स्थान भगवान से कई गुना ज्यादा बड़ा होता है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है। वेद व्यास जो ऋषि पराशर के पुत्र थे। शास्त्रों के अनुसार, महर्षि वेदव्यास को तीनों कालों का ज्ञाता माना जाता है। महर्षि वेदव्यास के नाम के पीछे भी एक कथा है। माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास में वेदों को अलग-अलग खंडों में विभाजित कर उनका नामकरण ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद किया। वेदों का इस प्रकार विभाजन करने के कारण ही वह वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।