लखनऊ विशेष
अगर आप तहज़ीब और नज़ाकत से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं,
बेशक मुस्कुराइए की आप लखनऊ में हैं.
वर्ष 1967 में आई एक हिंदी फिल्म “पालकी” में एक गाना है जिसे नौशाद अली जी द्वारा कंपोज किया गया है और इस गाने को मोहम्मद रफी जी ने गाया है। यह लखनऊ की नजाकत और उसकी तहजीब को और साथ ही साथ लखनऊ की हवाओं में बिखरे रंगों को बहुत ही बेहतरीन तरीके से पेश किया है जो कि इस प्रकार हैं-
ए शहर-ए- लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
ए शहर-ए- लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
ए शहर-ए- लखनऊ
मेरे लिए बहार भी तू गुलबदन भी तू
परवाना और शम्मा भी तू अंजुमन भी तू
जुल्फों की तरह महकी हुई तेरी शाम है
ए शहर-ए- लखनऊ
कैसा निखार तुझ में है क्या-क्या है बागपन
गजलें गली-गली हैं तो नगमें चमन चमन
शायर के दिल से पूछ तेरा क्या मकाम है
ए शहर-ए- लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
ए शहर-ए- लखनऊ
वो है लोग सहरे निकाला काहे जिसे
फिदों के हुस्न रश के बहरा काहे जिसे
तेरी हर एक अदा में वफा का पयाम है
ए शहर-ए- लखनऊ तुझे मेरा सलाम है
तेरा ही नाम दूसरा जन्नत का नाम है
ए शहर-ए- लखनऊ
अपना लखनऊ
लखनऊ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी है। यह प्रशासनिक रूप से लखनऊ जिले के अंतर्गत आता है। यहाँ लखनऊ मंडल का प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित है। इसके उत्तर में सीतापुर और हरदोई जिले,पूर्व में बाराबंकी, दक्षिण में रायबरेली एवं दक्षिण-पश्चिम में उन्नाव जिला स्थित है। गोमतीनदी लखनऊ जिले के बीच से होकर गुजरती हैं इसकी दिशा उत्तर से पूर्व की ओर है।
लखनऊ उत्तर भारत का एक प्रमुख बाजार एवं वाणिज्यक केंद्र ही नहीं बल्कि उत्पाद एवं सेवाओं का उभरता हुआ केंद्र भी है। लखनऊ दशहरी आम, चिकन के व्यापार, जरदोजी, इत्र, नक्काशी की कलाकृतियों,चांदी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है। लखनऊ और उसके आसपास के कई दर्शनीय स्थल हैं इनमें रेजीडेन्सी, गोमती रिवरफ्रंट, बड़ा इमामबाड़ा, छतर मंजिल, रूमी दरवाजा, हाथी पार्क, बुद्धा पार्क, नींबू पार्क, इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान, मनकामेश्वर मंदिर,एवं हनुमान सेतु मंदिर इत्यादि प्रमुख हैं।
पूरी दुनिया में मशहूर हैं,
लखनऊ के नबाब और क़बाब।
लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को “नवाबों के शहर” के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं।
इतिहास और नामकरण:-
प्राचीन लखनऊ कौशल महाजनपद का हिस्सा था। यह भगवान श्री राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था।अतः इसे लक्ष्मणवती, लक्ष्मणपुर,लखनपुर,लखनपुरी आदि नामों से जाना गया। जो बाद में धीरे-धीरे बदलते-बदलते लखनऊ हो गया। लखनऊ के नामकरण को लेकर कई मतभेद हैं। मुस्लिम इतिहासकारों के मतानुसार, “बिजनौर के शेख यहाँ 1526 में आए और निवास हेतु वास्तुविद लखना की देखरेख में एक किले का निर्माण करवाया। यह किला लखना के नाम से जाना जाने लगा और धीरे-धीरे बदलते-बदलते यह लखनऊ हो गया। यह मत सत्य भी प्रतीत होता है क्योंकि कभी भी किसी वास्तुविद के नाम पर किसी नगर का नाम नहीं रखा गया है। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफुद्दौला ने 1775 में की थी। नवाब आसफुद्दौला ने लखनऊ को अवध राज्य की राजधानी बनाया और इसे समृद्ध किया। बाद में लॉर्ड डलहौजी ने अवध का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर लिया। वर्ष 1902 में नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस अर्थात अवध का नाम बदलकर यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा एंड अवैध कर दिया गया। साधारण भाषा में इसे यूनाइटेड प्रोविंस कहा गया।
उत्तर प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद में स्थित है जबकि राजधानी लखनऊ में एक खंडपीठ स्थापित की गई। स्वतंत्रता के बाद 12 जनवरी,1950 को यूनाइटेड प्रोविंस का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया। श्री गोविन्द वल्लभ पंत जी उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने और 1963 में श्रीमती सुचेता कृपलानी जी उत्तर प्रदेश व भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनीं।
भूगोल
विशाल गांगेय मैदान के हृदय क्षेत्र में स्थित लखनऊ शहर बहुत से ग्रामीण कस्बों एवं गांवों से घिरा हुआ है, जैसे अमराइयों का शहर मलिहाबाद,ऐतिहासिक काकोरी, मोहनलालगंज, गोसांईगंज, चिन्हट और इटौंजा। इस शहर के पूर्वी ओर बाराबंकी जिला है, तो पश्चिमी ओर उन्नाव जिला एवं दक्षिणी ओर रायबरेली जिला है। इसके उत्तरी ओर सीतापुर एवं हरदोई जिले हैं। गोमती नदी, मुख्य भौगोलिक भाग, शहर के बीचोंबीच से निकलती है और लखनऊ को ट्रांस-गोमती एवं सिस-गोमती क्षेत्रों में विभाजित करती है। लखनऊ शहर भूकम्प क्षेत्र तृतीय स्तर में आता है।
जलवायु :- लखनऊ में गर्म अर्ध-उष्णकटिबन्धीय जलवायु है। यहां ठंडे शुष्क शीतकाल दिसम्बर-फरवरी तक एवं शुष्क गर्म ग्रीष्मकाल अप्रैल-जून तक रहते हैं। मध्य जून से मध्य सितंबर तक वर्षा ऋतु रहती है, जिसमें औसत वर्षा 1010 मि.मी. (40 इंच) अधिकांशतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है। शीतकाल का अधिकतम तापमान 21°से. एवं न्यूनतम तापमान 3-4°से. रहता है। दिसम्बर के अंत से जनवरी अंत तक कोहरा भी रहता है। ग्रीष्म ऋतु गर्म रहती है, जिसमें तापमान 40-45°से. तक जाता है और औसत उच्च तापमान 30°से. तक रहता है।
जनसांख्यिकी :-लखनऊ की अधिकांश जनसंख्या पूर्वार्ध उत्तर प्रदेश से है। फिर भी यहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के अलावा बंगाली, दक्षिण भारतीय एवं आंग्ल-भारतीय लोग भी बसे हुए हैं। यहां की कुल जनसंख्या का 77% हिन्दू एवं 20% मुस्लिम लोग हैं। शेष भाग में सिख, जैन, ईसाई एवं बौद्ध लोग हैं। लखनऊ भारत के सबसे साक्षर शहरों में से एक है। यहां की साक्षरता दर 82.5% है, स्त्रियों की
78% एवं पुरुषों की साक्षरता 81% हैं।
शहर और आस-पास
पुराने लखनऊ में चौक का बाजार प्रमुख है। यह चिकन के कारीगरों और बाजारों के लिए प्रसिद्ध है। यह इलाका अपने चिकन के दुकानों व मिठाइयों की दुकाने की वजह से मशहूर है। चौक में नक्खास बाजार भी है। यहां का अमीनाबाद दिल्ली के चाँदनी चौक की तरह का बाज़ार है जो शहर के बीच स्थित है। यहां थोक का सामान, महिलाओं का सजावटी सामान, वस्त्राभूषण आदि का बड़ा एवं पुराना बाज़ार है।
दिल्ली के ही कनॉट प्लेस की भांति यहां का हृदय हज़रतगंज है।
यहां खूब चहल-पहल रहती है। प्रदेश का विधान सभा भवन भी यहीं स्थित है। इसके अलावा हज़रतगंज में जी पी ओ, कैथेड्रल चर्च, चिड़ियाघर, उत्तर रेलवे का मंडलीय रेलवे कार्यालय (डीआरएम ऑफिस), लाल बाग, पोस्टमास्टर जनरल कार्यालय (पीएमजी),परिवर्तन चौक, बेगम हज़रत महल पार्क भी काफी प्रमुख़ स्थल हैं। इनके अलावा निशातगंज, डालीगंज, सदर बाजार, बंगला बाजार, नरही, केसरबाग भी यहां के बड़े बाजारों में आते हैं।
अमीनाबाद लखनऊ का एक ऐसा स्थान है जो पुस्तकों के लिए मशहूर है। यहां के आवासीय इलाकों में सिस-गोमती क्षेत्र में राजाजीपुरम, कृष्णानगर, आलमबाग, दिलखुशा, आर.डी.एस.ओ.कालोनी, चारबाग, ऐशबाग, हुसैनगंज, लालबाग, राजेंद्रनगर, मालवीय नगर, सरोजिनीनगर, हैदरगंज, ठाकुरगंज एवं सआदतगंज आदि क्षेत्र हैं। ट्रांस-गोमती क्षेत्र में गोमतीनगर,इंदिरानगर, महानगर, अलीगंज, डालीगंज, नीलमत्था कैन्ट, विकासनगर, खुर्रमनगर, जानकीपुरम एवं साउथ-सिटी (रायबरेली रोड पर) आवासीय क्षेत्र हैं।
अर्थव्यवस्था
लखनऊ उत्तरी भारत का एक प्रमुख बाजार एवं वाणिज्यिक नगर ही नहीं, बल्कि उत्पाद एवं सेवाओं का उभरता हुआ केन्द्र भी बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी होने के कारण यहां सरकारी विभाग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बहुत हैं। यहां के अधिकांश मध्यम-वर्गीय वेतनभोगी इन्हीं विभागों एवं उपक्रमों में नियुक्त हैं। सरकार की उदारीकरण नीति के चलते यहां व्यवसाय एवं नौकरियों तथा स्व-रोजगारियों के लिए बहुत से अवसर खुल गये हैं। इस कारण यहां नौकरी पेशे वालों की संख्या निरंतर बढ़ती रहती है। लखनऊ निकटवर्ती नोएडा एवं गुड़गांव के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं बीपीओ कंपनियों के लिए श्रमशक्ति भी जुटाता है। यहां के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लोग बंगलुरु एवं हैदराबाद में भी बहुतायत में मिलते हैं। शहर में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एसआईडीबीआई) तथा प्रादेशिक औद्योगिक एवं इन्वेस्टमेंट निगम, उत्तर प्रदेश (पिकप) के मुख्यालय भी स्थित हैं। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम का क्षेत्रीय कार्यालय भी यहीं स्थित है। यहां अन्य व्यावसायिक विकास में उद्यत संस्थानों में कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) एवं एन्टरप्रेन्योर डवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ईडीआईआई) हैं।
उत्पादन एवं संसाधन:-लखनऊ में स्थित हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड की इकाई के पास प्रधान प्रचालन सुविधाएं उपलब्ध हैं। लखनऊ में बड़ी उत्पादन इकाइयों में हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड, टाटा मोटर्स, एवरेडी इंडस्ट्रीज़, स्कूटर इंडिया लिमिटेड आते हैं। संसाधित उत्पाद इकाइयों में दुग्ध उत्पादन, इस्पात रोलिंग इकाइयाँ एवं एल पी जी भरण इकाइयाँ आती हैं। शहर की लघु एवं मध्यम-उद्योग इकाइयाँ चिन्हट, ऐशबाग, तालकटोरा एवं अमौसी के औद्योगिक एन्क्लेवों में स्थित हैं। चिन्हट अपने टेराकोटा एवं पोर्सिलेन उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है।
परम्परागत व्यापार
दशहरी आम लखनऊ के निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाया जाता है, व यहां की परंपरागत उपज में से एक है। परंपरानुसार लखनवी आम (खासकर दशहरी आम), खरबूजा एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाये जा रहे अनाज की मंडी रही है। यहां के मशहूर मलीहाबादी दशहरी आम को भौगोलिक संकेतक का विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त हो चुका है।
मलीहाबादी आम को यह विशेष दर्जा भारत सरकार के भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री कार्यालय, चेन्नई ने एक विशेष क़ानून के अंतर्गत्त दिया गया है। एक अलग स्वाद और सुगंध के कारण दशहरी आम की संसार भर में विशेष पहचान बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मलीहाबादी दशहरी आम लगभग 6,253 हैक्टेयर में उगाए जाते हैं और 15,658.31 टन उत्पादन होता है।
गन्ने के खेत एवं चीनी मिलें भी निकट ही स्थित हैं। इनके कारण मोहन मेकिन्स ब्रीवरी जैसे उद्योगकर्ता यहां अपनी मिलें लगाने के लिए आकर्षित हुए हैं। मोहन मेकिन्स की इकाई 1855 में स्थापित हुई थी। यह एशिया की प्रथम व्यापारिक ब्रीवरी थी।
लखनवी चिकन
लखनऊ का चिकन का व्यापार भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक लघु-उद्योग है, जो यहां के चौक क्षेत्र के घर घर में फ़ैला हुआ है। चिकन एवं लखनवी ज़रदोज़ी, दोनों ही देश के लिए भरपूर विदेशी मुद्रा कमाते हैं। देश और दुनिया के वस्त्र बाजारों में लखनवी चिकन कुछ यूं है जैसे हजार मनकों के दरम्यान हीरा। महीन कपड़े पर सुई-धागे से विभिन्न टांकों द्वारा की गई हाथ की कारीगरी लखनऊ की चिकन कला कहलाती है। अपनी विशिष्टता के कारण ही ये कला सैंकड़ों वर्षों से अपनी लोकप्रियता बरकरार रखे हुए है।
चिकन ने बॉलीवुड एवं विदेशों के फैशन डिज़ाइनरों को सदा ही आकर्षित किया है। लखनवी चिकन एक विशिष्ट ब्रांड के रूप में जाना जाये और उसे बनाने वाले कारीगरों का आर्थिक नुकसान न हो, इसलिए केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की टेक्सटाइल कमेटी ने चिकन को भौगोलिक संकेतक के तहत रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेटर के यहां पंजीकृत करा लिया है। इस प्रकार अब विश्व में चिकन की नकल कर बेचना संभव नहीं हो सकेगा। नवाबों के काल में पतंग-उद्योग भी अपने चरमोत्कर्ष पर था। यह आज भी अच्छा लघु-उद्योग है। लखनऊ तम्बाकू का औद्योगिक उत्पादनकर्ता रहा है। इनमें किमाम आदि प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा इत्र, कलाकृतियां जैसे चिन्हट की टेराकोटा, मृत्तिकाकला, चाँदी के बर्तन एवं सजावटी सामान, सुवर्ण एवं रजत वर्क तथा हड्डी-पर नक्काशी करके बनी कलाकृतियों के लघु-उद्योग बहुत चल रहे हैं।
यातायात
सड़क यातायात :- शहर में सार्वजनिक यातायात के उपलब्ध साधनों में सिटी बस सेवा, टैक्सी, साइकिल रिक्शा, ऑटोरिक्शा, टेम्पो एवं सीएनजी बसें हैं। सीएनजी को हाल ही में प्रदूषण पर नियंत्रण रखने हेतु आरंभ किया गया है। नगर बस सेवा को लखनऊ महानगर परिवहन सेवा संचालित करता है। यह उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की एक इकाई है। शहर के हज़रतगंज चौराहे से चार राजमार्ग निकलते हैं: राष्ट्रीय राजमार्ग 24 – दिल्ली को, राष्ट्रीय राजमार्ग 25 – झांसी और मध्य प्रदेश को, राष्ट्रीय राजमार्ग 56 – वाराणसी को एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 27 मोकामा, बिहार को। प्रमुख बस टर्मिनस में आलमबाग का डॉ॰भीमराव अम्बेडकर बस टर्मिनस आता है। इसके अलावा अन्य प्रमुख बस टर्मिनस केसरबाग, चारबाग आते थे, जिनमें से चारबाग का बस टर्मिनस, जो चारबाग रेलवे स्टेशन के ठीक सामने था, नगर बस डिपो बना कर स्थानांतरित कर दिया गया है। यह रेलवे स्टेशन के सामने की भीड़ एवं कंजेशन को नियंत्रित करने हेतु किया गया है।
रेल यातायात
चारबाग रेलवे स्टेशन
लखनऊ में कई रेलवे स्टेशन हैं। शहर में मुख्य रेलवे स्टेशन चारबाग रेलवे स्टेशन है। इसकी शानदार महल रूपी इमारत 1923 में बनी थी।
मुख्य टर्मिनल उत्तर रेलवे का है (स्टेशन कोड: LKO)। दूसरा टर्मिनल पूर्वोत्तर रेलवे (NER) मंडल का है। (स्टेशन कोड: LJN)। लखनऊ एक प्रधान जंक्शन स्टेशन है, जो भारत के लगभग सभी मुख्य शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहां और 19 रेलवे स्टेशन हैं: आलमनगर, मल्हौर, उत्तरटिया, ट्रांस्पोर्ट नगर, दिलखुशा, गोमतीनगर, बादशाह नगर, मानक नगर, अमौसी, ऐशबाग जंक्शन, लखनऊ सिटी, डालीगंज और मोहीबुल्लापुर|
अब मीटर गेज लाइन ऐशबाग से आरंभ होकर लखनऊ सिटी, डालीगंज एवं मोहीबुल्लापुर को जोड़ती हैं। मोहीबुल्लापुर के अलावा अन्य स्टेशन ब्रॉड गेज से भी जुड़े हैं। अन्य सभी स्टेशन शहर की सीमा के भीतर ही हैं, एवं एक दूसरे से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़े हैं। अन्य उपनगरीय स्टेशनों में निम्न स्टेशन हैं: बख्शी का तालाब और काकोरी ।
मुख्य रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में 15 प्लेटफ़ॉर्म हैं। अमौसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शहर का मुख्य विमानक्षेत्र है और शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
लखनऊ वायु सेवा द्वारा नई दिल्ली, पटना, कोलकाता एवं मुंबई एवं भारत के कई मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। यह ओमान एयर, कॉस्मो एयर, फ़्लाई दुबई, साउदी एयरलाइंस एवं इंडिगो एयर तथा अन्य कई अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों से जुड़ा हुआ है। इन गंतव्यों में लंदन, दुबई, जेद्दाह, मस्कट, शारजाह, सिंगापुर एवं हांगकांग आते हैं। हज मुबारक के समय यहां से हज-विशेष उड़ानें सीधे जेद्दाह के लिए चलती हैं।
लखनऊ मेट्रो
लखनऊ के लिए उच्च क्षमता मास ट्रांज़िट प्रणाली यानि लखनऊ मेट्रो महानगर में यातयात का एक प्रमुख साधन है। इसके लिए दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने ही योजनाएं बनाई थी और यह काम श्रेई इंटरनेशनल को दिया था। मेट्रो रेल के संचालन को मूर्त रूप देने और उस पर आने वाले खर्च को पूरा करने की व्यवस्था के लिए राज्य सरकार ने कई अधीनस्थ विभागों के प्रमुख सचिवों और लखनऊ के मंडलायुक्तगणों की एक समिति बनाई।
लखनऊ में मेट्रो रेल शुरु होने के बाद सड़कों पर यातायात काफी कम हो गया है। लखनऊ में सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर बाइपास बना दिए जाने के बावजूद सड़कों पर गाड़ियों का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। इस कारण से यहां मेट्रो का त्वरित निर्माण अत्यावश्यक हो गया था । लखनऊ शहर में आरंभ में चार गलियारे निश्चित किये गए हैं:अमौसी से कुर्सी मार्ग, बड़ा इमामबाड़ा से सुल्तानपुर मार्ग, पीजीआई से राजाजीपुरम एवंहज़रतगंज से फैज़ाबाद मार्ग
लखनऊ के अलावा कानपुर, मेरठ और गाजियाबाद शहरों में मेट्रो रेल चलाने की योजना है। इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान एवं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में भी इसे चलाने की योजनाएं बन रही हैं।
अनुसंधान एवं शिक्षा
लखनऊ में देश के कई उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान भी हैं। इनमें से कुछ हैं: किंग जार्ज मेडिकल कालेज
और बीरबल साहनी अनुसंधान संस्थान। यहां भारत के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की चार प्रमुख प्रयोगशालाएँ (केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, औद्योगिक विष विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, राष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान अनुसंधान संस्थान(एनबीआरआई) और केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान(सीमैप)) उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी हैं।
लखनऊ में 06 विश्वविद्यालय हैं: लखनऊ विश्वविद्यालय,
उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय(UPTU), राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय(लोहिया लॉ विवि), बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, एमिटी विश्वविद्यालय एवं इंटीग्रल विश्वविद्यालय। यहां कई उच्च चिकित्सा संस्थान भी हैं: संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान(एसजीपीजीआई ) के अलावा निर्माणाधीन सहारा अस्पताल, अपोलो अस्पताल, एराज़ लखनऊ मेडिकल कालिज भी हैं। प्रबंधन संस्थानों में भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ (आईआईएम) , इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़(ल.वि.वि) आते हैं। यहां भारत के प्रमुखतम निजी विश्वविद्यालयों में से एक, एमिटी विश्वविद्यालय का भी परिसर है।
इसके अलावा यहां बहुत से उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के भी सरकारी एवं निजी विद्यालय हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं: सिटी मॉण्टेसरी स्कूल, ला मार्टिनियर महाविद्यालय, जयपुरिया स्कूल, कॉल्विन तालुकेदार्स कालेज, एम्मा थॉम्पसन स्कूल, सेंट फ्रांसिस स्कूल, महानगर बॉयज़ आदि।
लखनवी संस्कृति
लखनऊ अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ संजोये हुए है। भारत के उत्कृष्टतम शहरों में गिने जाने वाले लखनऊ की संस्कृति में भावनाओं की गर्माहट के साथ उच्च श्रेणी का सौजन्य एवं प्रेम भी है। लखनऊ के समाज में नवाबों के समय से ही “पहले आप!” वाली शैली समायी हुई है। हालांकि स्वार्थी आधुनिक शैली की पदचाप सुनायी देती है, किंतु फिर भी शहर की जनसंख्या का एक भाग इस तहजीब को संभाले हुए है। यह तहजीब यहां दो विशाल धर्मों के लोगों को एक समान संस्कृति से बांधती है। ये संस्कृति यहां के नवाबों के समय से चली आ रही है। लखनवी पान यहां की संस्कृति का अभिन्न अंग है इसके बिना लखनऊ अधूरा लगता है।
भाषा एवं गद्य :-लखनऊ में हिन्दी एवं उर्दू दोनों ही बोली जाती हैं किंतु उर्दू को यहां सदियों से खास महत्त्व प्राप्त रहा है। जब दिल्ली खतरे में पड़ी तब बहुत से शायरों ने लखनऊ का रुख किया। तब उर्दू शायरी के दो ठिकाने हो गये- देहली और लखनऊ। जहां देहली सूफ़ी शायरी का केन्द्र बनी, वहीं लखनऊ गज़ल विलासिता और इश्क-मुश्क का अभिप्राय बन गया। जैसे नवाबों के काल में उर्दू खूब पनपी एवं भारत की तहजीब वाली भाषा के रूप में उभरी। यहां बहुत से हिन्दू कवि एवं मुस्लिम शायर हुए हैं, जैसे बृजनारायण चकबस्त, ख्वाजा हैदर अली आतिश, विनय कुमार सरोज, आमिर मीनाई, मिर्ज़ा हादी रुसवा, नासिख, दयाशंकर कौल नसीम, मुसाहफ़ी, इनशा, सफ़ी लखनवी और मीर तकी “मीर” तो प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने उर्दू शायरी तथा लखनवी भाषा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। लखनऊ शिया संस्कृति के लिए विश्व के महान शहरों में से एक है। मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर उर्दू शिया गद्य में मर्सिया शैली के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। मर्सिया इमाम हुसैन की कर्बला के युद्ध में शहादत का बयान करता है, जिसे मुहर्रमके अवसर पर गाया जाता है। काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था, उर्दू शायरी से खासे प्रभावित थे, एवं बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। कई निकटवर्ती कस्बों जैसे काकोरी, दरयाबाद, बाराबंकी, रुदौली एवं मलिहाबाद ने कई उर्दू शायरों को जन्म दिया है। इनमें से कुछ हैं मोहसिन काकोरवी, मजाज़ खुमार बाराबंकवी एवं जोश मलिहाबादी। हाल ही में 2008 में 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की 140वीं वर्षगांठ पर इस विषय पर एक उपन्यास का विमोचन किया गया था। इस विषय पर प्रथम अंग्रेज़ी उपन्यास रीकैल्सिट्रेशन, एक लखनऊ के निवासी ने ही लिखा था।
लखनऊ जनपद के स्वतंत्रता संग्रामी
लखनऊ जनपद के काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल,
जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। लखनऊ जनपद के कुम्हरावां गांव में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को 13 स्वतंत्रता संग्रामी दिये जिन्होंने अलग अलग समय पर भारतीय जेलों में रहकर भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष को आगे बढाया इनके नाम इस प्रकार हैं
• स्व0 गुरू प्रसाद बाजपेयी ‘वैद्य जी’
• स्व0 राम सागर मिश्र ये प्रखर समाजवादी चिंतक थे जो उत्तर प्रदेश की विधान सभा के सदस्य रहे 1976 के आपातकाल में बंदी अवस्था में ही इन्होंने अपना शरीर छोडा लखनऊ में इनके नाम पर रामसागर मिश्र नगर बनाया गया जिसका नाम आगे चलकर इन्दिरानगर कर दिया गया।
• स्व0 रामदेव आजाद
• स्व0 फूलकली स्व0 सत्यशील मिश्र
• स्व0 बाबूलाल
• स्व0 जगदेव दीक्षित
• स्व0 श्याम सुन्दर दीक्षित ‘मुन्ने’
• स्व0 विश्वनाथ मिश्र ‘डाक्टर साहब’
• स्व0 पुत्तीलाल मिश्र
• स्व0 बद्री विशाल मिश्र
• श्री राम कुमार बाजपेयी
• श्री बचान शुक्ल जी
नृत्य एवं संगीत
प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कथक ने अपना स्वरूप यहीं पाया था। अवध के
अंतिम नवाब वाजिद अली शाह कथक के बहुत बड़े ज्ञाता एवं प्रेमी थे। लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, शंभु महाराज एवं बिरजू महाराज ने इस परंपरा को जीवित रखा है। लखनऊ प्रसिद्ध गज़ल गायिका बेगम अख्तर का भी शहर रहा है। वे गज़ल गायिकी में अग्रणी थीं और इस शैली को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया – उनकी गायी बेहतरीन गज़लों में से एक है। लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय का नाम यहां के महान संगीतकार पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के नाम पर रखा हुआ है। यह संगीत का पवित्र मंदिर है। श्रीलंका, नेपाल आदि बहुत से एशियाई देशों एवं विश्व भर से साधक यहां नृत्य-संगीत की साधना करने आते हैं। लखनऊ ने कई विख्यात गायक दिये हैं, जिनमें से नौशाद अली, तलत महमूद, अनूप जलोटा और बाबा सेहगल कुछ हैं। संयोग से यह शहर ब्रिटिश पॉप गायक क्लिफ़ रिचर्ड का भी जन्म-स्थान है।
फिल्मों की प्रेरणा
लखनऊ हिन्दी चलचित्र उद्योग की आरंभ से ही प्रेरणा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि लखनवी स्पर्श के बिना, बॉलीवुड कभी उस ऊंचाई पर नहीं आ पाता, जहां वह अब है। अवध से कई पटकथा लेखक एवं गीतकार हैं, जैसे मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़े आज़मी, जावेद अख्तर, अली रज़ा, भगवती चरण वर्मा, डॉ॰कुमुद नागर, डॉ॰अचला नागर, वजाहत मिर्ज़ा (मदर इंडिया एवं गंगा जमुना के लेखक), अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी एवं के पी सक्सेना जिन्होंने भारतीय चलचित्र को प्रतिभा से धनी बनाया। लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।
बहू बेगम, मेहबूब की मेहंदी, मेरे हुजूर, चौदहवीं का चांद, पाकीज़ा, मैं मेरी पत्नी और वो, सहर, अनवर और बहुत सी हिन्दी फिल्में या तो लखनऊ में बनी हैं, या उनकी पृष्ठभूमि लखनऊ की है। गदर फिल्म में भी पाकिस्तान के दृश्यों में लखनऊ की शूटिंग ही है। इसमें लाल पुल, लखनऊ एवं ला मार्टीनियर कालिज की शूटिंग हैं।
ज़ायक़ा-ए-अवध
अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी ज़ायक़ा-ए-अवध शैली है। इसमें विभिन्न तरह की बिरयानियां, कबाब, कोरमा, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा और रोटियां आदि हैं, जिनमें काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब प्रमुख हैं। शहर में बहुत सी जगह ये व्यंजन मिलेंगे। ये सभी तरह के एवं सभी बजट के होंगे। जहां एक ओर 1805 में स्थापित राम आसरे हलवाई की मक्खन मलाई एवं मलाई-गिलौरी प्रसिद्ध है, वहीं अकबरी गेट पर मिलने वाले हाजी मुराद अली के टुण्डे के कबाब भी कम मशहूर नहीं हैं। इसके अलावा अन्य नवाबी पकवानो जैसे ‘दमपुख़्त’, लच्छेदार प्याज और हरी चटनी के साथ परोसे गय सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है। लखनऊ की चाट देश की बेहतरीन चाट में से एक है और खाने के अंत में विश्व-प्रसिद्ध लखनऊ के पान जिनका कोई सानी नहीं है।
लखनऊ के अवधी व्यंजन जगप्रसिद्ध हैं। यहां के खानपान बहुत प्रकार की रोटियां भी होती हैं। ऐसी ही रोटियां यहां के एक पुराने बाज़ार में आज भी मिलती हैं, बल्कि ये बाजार रोटियों का बाजार ही है। अकबरी गेट से नक्खास चौकी के पीछे तक यह बाजार है, जहां फुटकर व सैकड़े के हिसाब से शीरमाल, नान, खमीरी रोटी, रूमाली रोटी, कुल्चा जैसी कई अन्य तरह की रोटियां मिल जाएंगी। पुराने लखनऊ के इस रोटी बाजार में विभिन्न प्रकार की रोटियों की लगभग 15 दुकानें हैं, जहां सुबह नौ से रात नौ बजे तक गर्म रोटी खरीदी जा सकती है। कई पुराने नामी होटल भी इस गली के पास हैं, जहां अपनी मनपसंद रोटी के साथ मांसाहारी व्यंजन भी मिलते हैं। एक उक्ति के अनुसार लखनऊ के व्यंजन विशेषज्ञों ने ही परतदार पराठे की खोज की है, जिसको तंदूरी परांठा भी कहा जाता है। लखनऊवालों ने भी कुलचे में विशेष प्रयोग किये। कुलचा नाहरी के विशेषज्ञ कारीगर हाजी जुबैर अहमद के अनुसार कुलचा अवधी व्यंजनों में शामिल खास रोटी है, जिसका साथ नाहरी बिना अधूरा है। लखनऊ के गिलामी कुलचे यानी दो भाग वाले कुलचे उनके परदादा ने तैयार किये थे।।
चिकन की कढाई
चिकन, यहाँ की कशीदाकारी का उत्कृष्ट नमूना है और लखनवी ज़रदोज़ी यहाँ का लघु उद्योग है जो कुर्ते और साड़ियों जैसे कपड़ों पर अपनी कलाकारी की छाप चढाते हैं। इस उद्योग का ज़्यादातर हिस्सा पुराने लखनऊ के चौक इलाके में फैला हुआ है। यहां के बाज़ार चिकन कशीदाकारी के दुकानों से भरे हुए हैं। मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा आदि 36 प्रकार के चिकन की शैलियां होती हैं। इसके माहिर एवं प्रसिद्ध कारीगरों में उस्ताद फ़याज़ खां और हसन मिर्ज़ा साहिब थे।
मीडिया
प्रेस :-लखनऊ इतिहास में भी पत्रकारिता का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले आरंभ किया गया समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड लखनऊ से ही प्रकाशित होता था। इसके तत्कालीन संपादक मणिकोण्डा चलपति राउ थे।
शहर के प्रमुख अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों में द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, द पाइनियर एवं इंडियन एक्स्प्रेस हैं। इनके अलावा भी बहुत से समाचार दैनिक अंग्रेज़ी, हिन्दी एवं उर्दू भाषाओं में शहर से प्रकाशित होते हैं। हिन्दी समाचार पत्रों में स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता एवं आई नेक्स्ट हैं। प्रमुख उर्दू समाचार दैनिकों में जायज़ा दैनिक, राष्ट्रीय सहारा, सहाफ़त, क़ौमी खबरें एवं आग हैं।
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया एवं यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के कार्यालय शहर में हैं, एवं देश के सभी प्रमुख समाचार-पत्रों के पत्रकार लखनऊ में उपस्थित रहते हैं।
रेडियो
ऑल इंडिया रेडियो के आरंभिक कुछ स्टेशनों में से लखनऊ केन्द्र एक है। यहां मीडियम वेव पर प्रसारण करते हैं। इसके अलावा यहां एफ एम प्रसारण भी 2000 से आरंभ हुआ था। शहर में निम्न रेडियो स्टेशन चल रहे हैं:
• 91.1 ;मेगा हर्ट्ज़ रेडियो सिटी
• 93.5 मेगा हर्ट्ज़ RED एफ़.एम
• 97.3 मेगा हर्ट्ज़ रेडियो मिर्ची
• 100.7 मेगा हर्ट्ज़ एआईआर एफ़एम रेनबो
• 105.6 मेगा हर्ट्ज़ ग्यानवाणी-एजुकेशनल
इंटरनेट
शहर में इंटरनेट के लिए ब्रॉडबैण्ड इंटरनेट कनेक्टिविटी एवं वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध हैं। प्रमुख सेवाकर्ता भारत संचार निगम लिमिटेड, भारती एयरटेल, रिलायंस कम्युनिकेशन्स, टाटा कम्युनिकेशन्स एवं एसटीपीआई का बृहत अवसंरचना ढांचा है। इनके द्वारा गृह प्रयोक्ताओं एवं निगमित प्रयोक्ताओं को अच्छी गति का ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध होता है। शहर में ढेरों इंटरनेट कैफ़े भी उपलब्ध हैं।
मशहूर पर्यटन स्थल
बड़ा इमामबाड़ा
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक ऐसा शहर है जो अपने भव्य इमारतों के कारण जाना जाता है। जिसमे बड़ा इमामबाड़ा भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक है। यह भूल भुलैया के नाम से भी प्रसिद्ध है।

इसका निर्माण कार्य आसफ – उद – दौरानी 1784 के दौरान करवाया था । इसे मरहूम हुसैन अली की शहादत की याद में बनवाया गया हैं । स्टेशन से इसकी दूरी 4.7 किलोमीटर है। ईरानी निर्माण शैली की बनी विशाल गुंबदनुमा इमारत देखने में अत्यंत खूबसूरत है। इमारत की छत तक जाने के लिए अनेक सीढ़ियां है जो आम आदमी को भ्रमित करने के लिए काफी हैं। अगर आम इंसान बिना किसी गाइड के मदद के स्मारक में प्रवेश करता है तो वह निश्चित ही इसमें भूल जाएगा अतः इसका नाम भूल भुलैया रखा गया। इस इमारत की शोभा बढ़ाने के लिए अनेक झरोखे बनाए गए हैं जहां से प्रवेश द्वार से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर नजर रखा जा सकता है किंतु प्रवेश करने वाले व्यक्तियों उन्हें नहीं देख सकता । दीवारों को इस तकनीकी के द्वारा बनाया गया है कि दूर खड़ा व्यक्ति अगर फुसफुसाकर बात करता है तो स्पष्ट रूप से सुनाई देता है। आप कभी लखनऊ आए तो इसे अवश्य देखें यह बहुत ही लाजवाब है।
छोटा इमामबाड़ा
बड़े इमामबाड़े से कुछ दूर पर एक भव्य इमारत है इसे छोटा इमामबाड़ा कहा जाता है। इस भव्य ऐतिहासिक संरचना का निर्माण अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह द्वारा वर्ष 1838 में करवाया गया था।इसे “हुसैनाबाद मुबारक” भी कहा जाता है प्रारंभ में यह शिया समुदाय के लिए मंडली रूप में बनाया गया था परंतु बाद में यह इमारत नवाब और उनकी मां के लिए मकबरे के रूप में तब्दील हो गया। इमारत के अंदरूनी हिस्से को बेल्जियम से लाए गए झूमर और क्रिस्टल लैंप से बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया है। इसी कारण इसे ‘द पैलेस ऑफ लाइट्स’ का उपनाम दिया गया है।
रूमी दरवाजा
प्रसिद्ध रूमी दरवाजा पुराने लखनऊ में 60 फीट ऊंचा मेहराबनुमा आकृति में बना आकर्षक प्रवेश द्वार है। यह प्राचीन अवधि वास्तु कला का प्रदर्शन करने वाला बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा के बीच स्थित है। इसका निर्माण नवाब आसिफ-उद-दौला द्वारा कराया गया था। जब 1848 के दौरान उत्तर भारत में अकाल पड़ा तो लखनऊ के नवाब ने एक तात्कालिक योजना बनवाई, जिसमें कारीगर और मजदूरों को रोजगार प्रदान किया गया तथा नवाब को हमेशा के लिए गर्वित करने के लिए महान रूमी दरवाजा बनवाया गया इस दरवाजे पर लगी सजावटी लाइटों को शाम के समय देखने में अत्यधिक आकर्षक लगता है।
रेजीडेंसी लखनऊ
गोमती नदी के तट पर स्थित रेजीडेंसी लखनऊ के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। इसका निर्माण कार्य आसिफ उद दौला ने 1775 ईस्वी में शुरू करवाया और 1800 मैं इस नवाब सआदत अली खान के द्वारा पूरा किया गया ।

रेजीडेंसी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का निवास स्थान था। भारत की आजादी की लड़ाई रेजीडेंसी में भी लड़ी गई थी वहां के टूटे-फूटे इमारतें और गोलियों के निशान को देखने से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है। लखनऊ स्टेशन से रेजीडेंसी की दूरी 4.8 किलोमीटर है। आजादी की लड़ाई के पश्चात रेजीडेंसी को उसी हालत में छोड़ दिया गया वहीं टूटी फूटी इमारतें उसकी शोभा बढ़ाती है।
आप लखनऊ आए तो यहां अवश्य आएंगे बहुत ही शानदार है।
ब्रिटिश रेजिडेंसी परिसर
ब्रिटिश रेजिडेंसी परिसर को “रेजिडेंसी कॉन्प्लेक्स” भी कहा जाता है। इस परिसर में अनेक इमारतें हैं जो कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जनरलों के मुख्यालय तथा आवास के रूप में कार्य करता था। हांलाकि 1857 के विद्रोह में यह परिसर ब्रिटिश शरणार्थी शिविर में बदल गया था। इस परिसर में एक ओर कब्रिस्तान है जो विद्रोह के दौरान घेराबंदी के समय मारे गए अंग्रेजों की कब्रें हैं यह परिसर अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। रेजिडेंसी में हर शाम को 1857 के विद्रोह की याद ताजा करते हुए एक “लाइट एंड साउंड” भी आयोजित किया जाता है।
हुसैनाबाद का क्लाॅक टावर
हुसैनाबाद घंटाघर इमामबाड़ा के ठीक सामने स्थित है। यह टावर भारत में विक्टोरियन गोथिक शैली की वास्तुकला को प्रदर्शित करती है ।इस घंटाघर का निर्माण 1887 मे नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने सर जॉर्ज कपूर की आगमन पर करवाया था।

भारत की सबसे ऊंची घंटाघर की ऊंचाई 67 मीटर यानी 221 फीट है। इसे लंदन के बिग बेन क्लॉक टावर प्रतिकृति के रूप में बनाया गया था। इसकी खास बात यह है,कि इसकी विशाल पेंडुलम की लंबाई 14 फीट है और घड़ी की डायल 12 – पूरी तरह से सोने के फूल के आकार की डिजाइन की गई है और इसके चारों ओर घंटियां है। अनेकों आगंतुक यहां आते हैं और इस विशाल क्लॉक टावर को देख आनंद उठाते हैं आप भी अवश्य आए।
आप इस क्लाॅक टावर की खूबसूरती और बनाने की शैली देखकर अचंभित जरूर हो जाएंगे।
चंद्रिका देवी मंदिर
गोमती नदी के तट पर स्थित चंद्रिका देवी मंदिर की महिमा अपरंपार है।यह स्थानीय लोगों तथा आसपास के शहरों के लोगों के लिए भी प्रमुख तीर्थ स्थल है।स्टेशन से मां चंद्रिका देवी मंदिर की दूरी 30.0 किलोमीटर है।मंदिर के बाहर स्थित बाजार में पूजा के सामान से लेकर आपके निजी उपयोग में आने वाली वस्तुएं इत्यादि सब मौजूद हैं। 300 साल पुराना मंदिर चंद्रिका देवी के नाम से जाना जाता है जो मां दुर्गे का एक रूप है। प्राचीन काल से इस मंदिर का बहुत ही मान्यता है ,हमारे पुराणों में इसकी विवेचना की गई है। इस मंदिर की अनेकों मान्यताएं हैं ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण भगवान घटोत्कच के पुत्र को शक्ति प्राप्त करने के लिए तीर्थ के बारे में सलाह दी ।घटोत्कच के पुत्र ने लगातार 3 साल तक मां चंद्रिका देवी की पूजा किया।

अमावस्या और नवरात्र की पूर्व संध्या पर मंदिर और मंदिर परिसर के आस पास बहुत सारी धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती है राज्य के विभिन्न हिस्सों से लोग हवन, मुंडन के लिए यहां आते हैं इसके अलावा इन दिनों के दौरान कीर्तन, सत्संग भी आयोजित की जाती हैं ।ऐसा कहा जाता है कि चंद्रिका ( सिर पर पहने जाने वाले गहने) देवी सती का हिस्सा यहां गिरा था। पुराणों के अनुसार इस धाम में श्राप मुक्ति के लिए चंद्रमा को भी स्नान करने के लिए आना पड़ा था। यहां आने वाले लोग बताते हैं कि मां के दरबार में पहुंचती उनकी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। अतः आप लखनऊ में माता के दर्शन के लिए अवश्य आएं।
आनंदी वाटर पार्क
फैजाबाद रोड के साथ लखनऊ के बाहरी इलाके में स्थित, आनंदी वाटर पार्क उत्तरी क्षेत्र के सबसे बड़े वाटरपार्कों में से एक है। पार्क स्पलैश पैड, पानी के झूलों और अन्य तैराकी गतिविधियों की एक श्रृंखला की मेजबानी करता है।

फूड कोर्ट और बच्चों के खेल क्षेत्र के साथ, पार्क पार्टियों, शादियों और अन्य विशेष अवसरों की व्यवस्था करने के लिए एक पारंपरिक क्षेत्र भी प्रदान करता है। इसके अलावा, आनंदी वाटर पार्क में एक निकटवर्ती क्लब और रिसॉर्ट भी है। इस वाटर पार्क में कुछ जानवरों और पक्षियों के साथ छोटे बाड़े भी हैं। थीम-आधारित कार्यक्रमों और अन्य रंगीन उत्सवों की मेजबानी करने के लिए एक डिस्कोथेक, एक झरना और एक अखाड़ा भी है।
लखनऊ का चौक
लखनऊ का चौक क्षेत्र राज्य के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत के सबसे पुराने बाजारों में से एक है। यह शहर के उन स्थानों में से एक है जो इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में एक खिड़की है। चिकन के काम से लेकर रसीले कबाब और माखन मलाई तक, लखनऊ चाउ प्रमुख खरीदारी और भोजन केंद्रों में से एक है।

चौक बाजार में 5000 से अधिक दुकानें हैं, जो दोनों तरफ संकरी, भूलभुलैया वाली गलियों के चारों ओर फैली हुई हैं और कभी-कभी सड़क का अधिकांश हिस्सा खुद ही ले लेती हैं। इन विचित्र दुकानों में, ईंट की दुकानों के साथ-साथ अस्थायी दोनों तरह की दुकानों में, आपको प्रामाणिक चिकनकारी और जरदोजी के कपड़े, पारंपरिक हस्तनिर्मित आभूषण, लकड़ी, बांस और हाथीदांत से हस्तनिर्मित घरेलू सामान, नगाड़ा जूते, और असंख्य अन्य छोटी और बड़ी वस्तुएं, आपकी कल्पना से परे इटार या असली फूलों के सार से बने इत्र मिलेंगे।
अमीनाबाद
लखनऊ के सबसे व्यस्त और सबसे पुराने शॉपिंग हब में से एक, अमीनाबाद एक प्रसिद्ध बाजार है जो कपड़ों और आभूषणों से लेकर सौंदर्य प्रसाधन, जूते और यहां तक कि किताबों तक उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला बेचता है।
स्थानीय रूप से पसंद किए जाने वाले स्ट्रीट फूड और अन्य प्रामाणिक खाद्य स्टालों और रेस्तरां की एक श्रृंखला है। किसी भी अन्य स्ट्रीट मार्केट की तरह, अमीनाबाद को भी आसान सौदेबाजी कौशल की आवश्यकता होती है। हालांकि, यहां अधिकांश स्टॉल बहुत अधिक कीमत वाले नहीं हैं।
मरीन ड्राइव
लखनऊ शहर के गोमती नगर की शोभा बढ़ाने के क्रम में मरीन ड्राइव भी अपना योगदान निभाता है। मुंबई के प्रसिद्ध मरीन ड्राइव के नाम पर का नाम मरीन ड्राइव रखा गया है।

यहां युवा वर्गों की ज्यादा भीड़ पाई जाती है।युवा वर्गों के लिए हैंग आउट स्थान के रूप में प्रसिद्ध है।इसके अतिरिक्त इसका उपयोग प्रातः काल भ्रमण करने, साइकिल चलाने, जोगिंग करने, के लिए करते हैं। यहां अनेक छोटे-छोटे फास्ट फूड के स्टाल लगे रहते हैं आराम हेतु जगह जगह पर बेंच की व्यवस्था है। सायंकाल के समय अनेकों की संख्या में लोग यहां आते हैं और लुफ्त उठाते हैं।पिकनिक और फैमिली गैदरिंग के लिए उचित स्थान है। मरीन ड्राइव पर समय-समय पर बाइकर्स की रेप करवाई जाती है जिसे देखने अनेकों की संख्या में लोग आते हैं।
अंबेडकर मेमोरियल पार्क
अंबेडकर मेमोरियल पार्क गोमती नगर के विपुल खंड पर स्थित है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नाम पर बना यह सार्वजनिक पार्क ज्योतिबा फुले, बिरसा मुंडा, कांशी राम और श्री नारायण गुरु सहित कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को भी समर्पित है। पार्क में महान ऐतिहासिक महत्व की विभिन्न मूर्तियां और संरचनाएं हैं।डॉक्टर अंबेडकर पार्क एक सार्वजनिक पार्क है |लखनऊ की गोमती नगर में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए आप गोमती नगर रेलवे स्टेशन पर भी उतर सकते हैं वहां से इसकी दूरी 4.9 किलोमीटर है।

यह स्मारक बीआर अंबेडकर को समर्पित है “जो भारतीय संविधान के पिता है।” यह स्मारक उन सभी को समर्पित है जो मानवता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए अपने जीवन को समर्पित किया है।यहाँ बॉलीवुड के अनेक फिल्मों की शूटिंग होती है अनेक संगीतकार अपने संगीत की वीडियो का रिकॉर्डिंग यहां करते हैं।पूरे स्मारक को राजस्थान से लाए गए लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाया गया है जय भारत के सबसे बड़े नियोजित आवासीय कॉलोनी गोमती नगर के पॉश इलाके में स्थित है। स्मारक के निर्माण कार्य में लगी लागत 7 बिलियन रुपये आंकी गई है।रात के समय इस पार्क में लगी लाइट्स इसकी खूबसूरती पर चार चांद लगाती हैं। यह स्मारक अंबेडकर की जीवनी को दर्शाते हुए उनकी कई प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया गया है। एक कुर्सी पर बैठे हुए अंबेडकर जी की कांस्य धातु की प्रतिमा है। 62 हाथियों की प्रतिमाओं द्वारा संरक्षित स्मारक का प्रवेश द्वार देखने में अत्यंत ही खूबसूरत और शानदार है। इसके अतिरिक्त एक अन्य इमारत में तथागत गौतम बुद्ध, संत कबीर दास, बिरसा मुंडा और गुरु घासीदास की 18 फुट ऊंची संगमरमर की मूर्तियां है।स्मारक की गुंबद पर जाकर आप लखनऊ के चारों तरफ का नजारा देख सकते हैं जो कि अत्यंत मनमोहक लगता है।पिरामिड के ऊपर से पानी के प्रवाह आगंतुक का मनोरंजन करता है। आप लखनऊ आए तो इस पार्क में अवश्य आए आपको आनंद की अनुभूति होगी।
नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान, लखनऊ
नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान, लखनऊ रिवर बैंक कॉलोनी में स्थित लखनऊ चिड़ियाघर शहर का एक प्रसिद्ध आकर्षण है। नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान के रूप में भी जाना जाता है, इसे मूल रूप से द प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल गार्डन के रूप में जाना जाता था।

लखनऊ चिड़ियाघर कई स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों का घर है, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध शाही बंगाल टाइगर, सफेद बंगाल टाइगर, हिमालयी काला भालू और एशियाई शेर हैं। नवाब नसीरुद्दीन हैदर द्वारा 1921 में स्थापित, यह 71.6 एकड़ का चिड़ियाघर प्रिंस ऑफ वेल्स की लखनऊ यात्रा का जश्न मनाने के लिए स्थापित किया गया था। सौ विभिन्न प्रजातियों के एक हजार से अधिक जानवरों के आवास, लखनऊ चिड़ियाघर में चिड़ियाघर के माध्यम से टॉय ट्रेन की सवारी जैसी कुछ गतिविधियाँ भी हैं। राज्य संग्रहालय लखनऊ चिड़ियाघर में अवध की कलाकृतियों को भी प्रदर्शित करता है। इसके अलावा, वन्यजीव सप्ताह और बाल दिवस जैसे कई कार्यक्रम भी यहां मनाए जाते हैं।
रामकृष्ण मठ

निराला नगर लखनऊ में स्थित रामकृष्ण मठ ,मठ और मंदिर है यह पूरी तरह संगमरमर से निर्मित है। इसमें रामकृष्ण,मां शारदा देवी और स्वामी विवेकानंदजी की विभिन्न मूर्तियां हैं। इस् मठ का आदर्श वाक्य ‘स्वयं के उद्धार के लिए तथा विश्व के कल्याण के लिए’ है।
हजरतगंज मार्केट,
लखनऊ के केंद्रीय खरीदारी जिले हजरतगंज का इसके पीछे एक लंबा इतिहास रहा है और एक महान बदलाव आया है जो अतीत और वर्तमान को पुल करता है और लखनऊ के केंद्रीय शॉपिंग आर्केड के रूप में काम करता है।दिल्ली का कनॉट प्लेस और लखनऊ का जनपथ मार्केट लगभग एक जैसा ही है। जी हां, हजरतगंज, लखनऊ का सेंटर है और फेमस शॉपिंग सेंटर भी। इस जगह को सन् 1810 में अमजद अली शाह ने बनवाया था।
यह मार्केट पहले क्वींस मार्ग पर स्थित था, जहां अंग्रेज अपनी गाड़ियां और बग्घी चलाने जाया करते थे। वर्तमान में हजरतगंज लखनऊ का वो चमकता कोना है, जहां लोग गॉसिप, शॉपिंग और ईटिंग, तीनों एक साथ करते हैं। इस मार्केट को विक्टोरियन लुक दिया गया है। यहां सभी दुकानों के बोर्ड के रंग और दुकानों के रंग एक जैसे ही हैं। इस जगह को खासतौर पर लखनऊ वालों के लिए शॉपिंग के नज़रिये से बनवाया गया है। यहां आपको लगभग हर ब्रैंड के आउटलेट्स और शोरूम आसानी से मिल जायेंगे। जनपथ मार्केट में खादी और चिकनकारी की ख़रीददारी के लिए भी कई सारे विकल्प हैं। साथ ही यहां एक ऐसी लेन यानि कि गली है, जो लड़कियों की फेवरिट जगह है। इसका नाम लव लेन है और यहां पर एक से बढ़कर एक लेटेस्ट फैशन वाली ड्रेसेस कम दामों में आराम से मिल जाती हैं।
इंदिरा गांधी तारामंडल, लखनऊ
लखनऊ के सूरजकुंड पार्क में गोमती नदी के तट पर स्थित इंदिरा गांधी तारामंडल को तारामंडल शो के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य आकर्षण विज्ञान और खगोल विज्ञान शो, 3D मॉडल और प्रदर्शनियाँ हैं। कोई भी भारतीय उपग्रहों के विभिन्न मॉडलों को देख सकता है और आर्यभट्ट, वराहमिहिर आदि जैसे प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिकों के बारे
में विविध डेटा पढ़ सकता है। साथ ही, 3 डी स्पेस शो के माध्यम से सितारों और भव्य आकाशगंगाओं के बीच अंतरिक्ष की आभासी यात्रा करें।
इंदिरा गांधी तारामंडल की आधारशिला उत्तर प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने 1988 में रखी थी, इस तारामंडल को अंततः 2003 में जनता के लिए खोल दिया गया था।
शाह नजफ इमामबाड़ा
शाह नजफ इमामबाड़ा एक मुस्लिम स्मारक है जो लखनऊ शहर में राणा प्रताप रोड पर स्थित है। गुंबद के आकार के स्मारक में नवाब गाजी-उद-दीन हैदर और उनकी तीन पत्नियों की कब्रें हैं।

एक खूबसूरत सामने वाले फूलों के यार्ड के बीच शानदार मुगल वास्तुकला को सजाते हुए, शाह नजफ इमामबाड़ा एक बड़े गुंबद वाले सफेद संगमरमर से तैयार संरचना है। गाज़ी-उद-दीन हैदर द्वारा स्वयं निर्मित, यह 19वीं शताब्दी का मण्डली हॉल इसके आसपास के क्षेत्र में लोकप्रिय ऊंट और तांगे की सवारी करता है। आगंतुकों को मस्जिद में प्रवेश करते समय जूते निकालना और अपने सिर को ढंकना सुनिश्चित करना चाहिए।
मोती महल पैलेस
नवाब सआदत अली खान द्वारा निर्मित, मोती महल लोकप्रिय रूप से पर्ल पैलेस के रूप में जाना जाता है। गोमती नदी के किनारे स्थित इस ऐतिहासिक स्मारक का निर्माण मुबारक मंजिल और शाह मंजिल के बगल में किया गया है। उस समय लखनऊ के नवाबों का एक पूर्व निवास, मोती महल शुरू में कैसर बाग परिसर का एक हिस्सा था।

उस समय के नवाब मनोरंजन के लिए पक्षियों और अन्य जानवरों के झगड़े को देखना पसंद करते थे। आज, आसपास के बगीचों का उपयोग सम्मेलनों, पार्टियों और ऐसे अन्य विशेष अवसरों के आयोजन के लिए किया जाता है।
ड्रीम वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क
ड्रीम वर्ल्ड वाटर एम्यूजमेंट पार्क मस्ती, रोमांच और आनंद से भरे दिन के लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन है। कई सवारी और गतिविधियों और मजेदार खेलों का आनंद लेते हुए, पार्क किशोरों और वयस्कों के लिए एक गर्म स्थान और शीर्ष पसंदीदा डेस्टिनेशन है। यहां कुछ फूड स्टॉल और छोटे भोजनालय हैं।

ड्रीम वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क भी देश के उन पुराने स्थलों में से एक है जहां एक इनडोर वाटर पार्क है। इसके अलावा, इसमें नाव की सवारी, लैंड गेम्स, पेंटबॉल, जुरासिक पार्क और इनडोर गेम्स भी हैं।
कॉन्स्टेंटिया (ला मार्टिनियर स्कूल), लखनऊ
लखनऊ के प्राचीन औपनिवेशिक स्थलों में से एक, ला मार्टिनेयर स्कूल की 1845 की इमारत में उस समय के फ्रांसीसी मेजर-जनरल क्लाउड मार्टिन का मकबरा है। इसके अलावा, इस यूरोपीय शैली की संरचना में एक पुस्तकालय, एक चैपल और एक अच्छी तरह से संरक्षित और सुंदर लॉबी रूम भी है।

यद्यपि यह अभी भी दो अलग-अलग लड़कों और लड़कियों के स्कूलों के साथ यहां पाठ्यक्रम बनाए रखता है, इस संस्थान के 1857 बैच ने विद्रोह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नक्काशीदार मेहराब और गहराई से सजाए गए बालकनियों जैसे कुछ वास्तुशिल्प हाइलाइट्स की मेजबानी करते हुए, यह विरासत भवन शहर के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में से एक है।
दिलकुशा कोठी
दिलकुशा कोठी लखनऊ के दिलकुशा क्षेत्र में गोमती नदी के तट पर स्थित है।इस कोठी का निर्माण कार्य सन् 1800 में एक ब्रिटिश मेजर गोरे आस्ले के द्वारा किया गया। हैरत की बात यह थी कि इस कोठी में एक भी आंगन नहीं था।

आज स्मारक के तौर पर कुछ दीवारें और मीनारें बची हुई है। ब्रिटिश की अभिनेत्री कोठी से प्रभावित हुई और कोरिया की राजधानी सियोल में अपना घर बनवाया और उन्होंने अपने घर का नाम दिलकुशा रखा।यह दावा किया जाता है कि दिलकुशा कोठी शायद ऐतिहासिक शहर लखनऊ में सबसे सुंदर स्मारकों में से एक है। भारतीय पुरातत्व सोसाइटी इसकी कायमता को बनाए रखने के लिए अनेकों कार्य किए हैं। सर्दियों में बड़ी संख्या में आगंतुक आते हैं आज के समय में यह एक पिकनिक स्पॉट बन गया है।
फिरंगी महल
फिरंगी महल की मुगल इमारत लखनऊ के इंदिरा नगर इलाके में स्थित है। एक फ्रांसीसी व्यवसायी, श्री नील का पूर्व स्वामित्व वाला निवास, पैलेस शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्रोत था और कुछ सबसे बड़े मुस्लिम शिक्षाविदों की स्थापना थी।

आज फिरंगी महल मुगल वास्तुकला, इस्लामी मूल्यों और एक महत्वपूर्ण आकर्षण के उत्कृष्ट अवशेष के रूप में खड़ा है। नवाबों का शहर लखनऊ की शोभा बढ़ाते हुए फिरंगी महल लखनऊ में विक्टोरिया रोड और चौक के बीच स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि इस इमारत का नाम फिरंगी रखने के पीछे एक तथ्य है।। माना जाता है कि यह चौक पहले यूरोपियन के कब्जे में था तब के समय में यूरोपियन को फिरंगी कहा जाता था इसलिए इसका नाम फिरंगी महल पड़ा। वास्तव में नील नामक पहला फ्रांसीसी व्यापारी जो इस इमारत का पहला मालिक था ।मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में आया था।यह महल पहले विदेशी स्वामित्व में था, जिसे बाद में एक शाही फरमान के बाद सरकार द्वारा जब्त कर लिया था ।बाद में इसे मुगल सम्राट के सलाहकार मुल्ला असद बन कुतुबुद्दीन शहीद और उनके भाई मुल्ला असद बंद कुतुब को दे दी गई थी।इन भाइयों ने इस केंद्र को भव्य इस्लामी संस्था में बदल दिया था जिसकी तुलना इंग्लैंड के कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से की जाती थी।महात्मा गांधी फिरंगी महल में कुछ दिन बिताए हैं माना जाता है कि उनके स्वागत में फिरंगी महल के मुसलमान कुछ दिन तक मांस का उपयोग बंद कर दिए थे। वह कमरा जहां गांधी जी रुके थे वह उनकी याद में समर्पित है। फिरंगी महल इस्लामी परंपराओं ,मान्यताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है एवं इस्लामिक परंपराओं के संरक्षण में भी।
गौतम बुद्ध पार्क

लखनऊ के हसनगंज में स्थित गौतम बुद्ध पार्क हाथी पार्क के बगल में स्थित है। 1980 में स्थापित, बच्चों और वयस्कों के बीच यह सबसे पसंदीदा, खिले हुए फूलों के साथ हरे भरे लॉन में झूलों और स्लाइडों से भरा हुआ है। इसके अलावा, गौतम बुद्ध पार्क मामूली कीमत पर पैडल बोटिंग की सुविधा भी देता है जो आगंतुकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। एक महान पिकनिक स्थल, पार्क में कुछ इलेक्ट्रिक सवारी, झूले और बच्चों के लिए एक खेल क्षेत्र भी है। यहां पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह भी है। सप्ताहांत के दौरान पार्क में काफी भीड़ हो सकती है। आराम के अलावा, इस हरे भरे स्थान में कुछ खाने के स्टॉल भी हैं।
शाही बावली

भारतीय और इस्लामी स्थापत्य शैली का एक जटिल विलय, शाही बावली पूर्व में उस समय के समाज के लिए एक जलाशय के रूप में बनाया गया था। इसका निर्माण 1784 और 1795 के बीच नवाब आसिफ-उद-दीन दौला और किफायत-उल्लाह द्वारा किया गया था, जो उस समय के उत्कृष्ट वास्तुकारों में से एक थे। पांच मंजिला आवास, नीचे के तीन एक नियमित भंडारण स्थान हैं और शीर्ष दो सामयिक भंडार हैं। हालांकि यह सिर्फ एक जलाशय है, यह एक अलंकृत है, जिसमें कुछ शानदार मेहराब और उत्कृष्ट नक्काशीदार दरवाजे हैं।
फन रिपब्लिक मॉल

लखनऊ के गोमती नगर में स्थित फन रिपब्लिक मॉल शहर के सबसे लोकप्रिय और सबसे बड़े मॉल में से एक है। ज़ी ग्रुप द्वारा 2007 में शुरू किया गया, मॉल बड़े ब्रांड के आउटलेट, फूड स्टॉल, किराने की दुकानों, परिधानों और कॉस्मेटिक स्टोरों से भरा हुआ है। क्लासिक फन सिनेमाज के अलावा, फन रिपब्लिक मॉल में कुछ टेक और डिजिटल स्टोर भी हैं। एक बुटीक होटल भी है। एक विशाल पार्किंग स्थान के साथ, मॉल अपने खेल और अन्य मजेदार गतिविधियों के साथ बच्चों का स्वागत करता है।
मनकामेश्वर मंदिर
मनकामेश्वर मंदिर लखनऊ में सरस्वती घाट पर यमुना नदी के तट पर स्थित है। भगवान शिव को समर्पित एक श्रद्धेय हिंदू मंदिर, इस मंदिर में सबसे पहले एक महिला पुजारी थी।

मनकामेश्वर मंदिर लखनऊ के डाली गंज में गोमती नदी के किनारे स्थित शिव-पार्वती का मंदिर है।इस मंदिर को बहुत ही मान्यताएं प्राप्त है। मंदिर की फर्श पर चांदी के सिक्के जडे हुए हैं।मनकामेश्वर मंदिर त्रेता युग का हैं यहां की आरती का विशेष महत्व है।मंदिर में आरती की घंटी एवं डमरु की आवाज आपको पूरी तरह से शिव की भक्ति में लीन कर देती है।स्टेशन से इसकी दूरी 5.3 किलोमीटर है।कहां जाता है माता सीता को वनवास छोड़ने के बाद लक्ष्मण जी ने यहीं रुक के भगवान शिव की आराधना की थी जिससे उनके मन को बहुत शांति मिली थी।उसके बाद कालांतर में यहां मनकामेश्वर मंदिर के स्थापना कर दी गई।मुस्लिम इलाके के मध्य स्थित मनकामेश्वर मंदिर भाईचारे का प्रतीक है।मंदिर में सुबह व शाम को भव्य आरती होती है आरती में शामिल होने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है अतः इस मंदिर का नाम मनकामेश्वर रखा गया है।सावन, महाशिवरात्रि और कजरी तीज के मौके पर मंदिर में बहुत से संख्या में भीड़ देखने को मिलती है।अतः आप लखनऊ में बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए अवश्य आएं आपके मन को अत्यंत शांति मिलेगी।
जामा मस्जिद
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित, जामा मस्जिद लखनऊ की सबसे बड़ी मस्जिद है।इसे जामी मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।रेलवे स्टेशन से जामा मस्जिद की दूरी 7.9 किलोमीटर है।इस मस्जिद का निर्माण कार्य मोहम्मद शाह ने शुरू किया। किंतु आकस्मिक 1840 में मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी ने यह कार्य पूरा करवाया ।

जामा मस्जिद की अंदरूनी हिस्से की खूबसूरती और चित्रकारी अत्यंत ही प्रभावशाली है।अगर नवाब की मृत्यु ना हुई होती तो लखनऊ का जामा मस्जिद दिल्ली के जामा मस्जिद से बड़ा होता । बनाने का मकसद भी यही था।जामा मस्जिद वास्तुकला को बहुत ही खूबसूरती से प्रदर्शित करता है। लेकिन यह सुंदर कारीगरी आप तभी देख पाएंगे जब आप नमाज हो, गैर नमाजी लोगों को बाहर से ही जाना पड़ता है।अगर आप लखनऊ जाते हैं और नमाजी हैं तो लखनऊ की जामा मस्जिद में जरूर जाना असली सुंदरता मस्जिद की अंदरूनी छत पर देखने को मिल जाएगी ।
डिज्नी वाटर वंडर पार्क
कानपुर-लखनऊ रोड पर स्थित डिज्नी वाटर वंडर पार्क एक वाटर कम एम्यूजमेंट पार्क है। 20 एकड़ में फैली यह संपत्ति पूरी तरह से मौज-मस्ती, भोजन और रोमांच के लिए समर्पित है। असंख्य मनोरंजन और मनोरंजक गतिविधियों की पेशकश करते हुए, यह शहर के सबसे पसंदीदा पार्कों में से एक है।
शहीद स्मारक

शहीद स्मारक या शहीद स्मारक लखनऊ के मुकरीमनगर, कैसरबाग में हरे-भरे लॉन के बीच एक सफेद संगमरमर के स्तंभ जैसी संरचना है। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों की याद में स्थापित इस महत्वपूर्ण स्तंभ का निर्माण 1970 के दशक में किया गया था। पास की गोमती नदी में नौका विहार की सुविधा भी है। स्मारक में परिसर के भीतर बैठने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ भी हैं।
हुसैनाबाद पिक्चर गैलरी
छोटा इमामबाड़ा और हुसैनाबाद क्लॉक टॉवर के करीब स्थित, हुसैनाबाद पिक्चर गैलरी लखनऊ में एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। क्षेत्रीय शासकों के आदमकद चित्रों को आवासित करते हुए, इस गैलरी को वास्तुकला की बार्डेरी शैली में बनाया गया था। हुसैनाबाद इमामबाड़ा के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी की बनी है पिक्चर गैलरी है।यहां लखनऊ के सभी नवाबों की तस्वीर देखी जा सकती है।यह गैलरी लखनऊ के उस समय की याद दिलाती है जब यहाँ नवाबों का राज हुआ करता था।

यहां बनी तस्वीर उस जमाने की है जब कोई डीएसएलआर और ऑयल पेंट नहीं हुआ करता था फिर भी तस्वीरें देखने लायक है।यहां उपस्थित तस्वीरों को सीरियल जो रात के पाउडर और फलों के रस से तैयार किया गया है।इस पिक्चर गैलरी में उपस्थित तस्वीर को लंदन से आए चित्रकार ट्रेस हैरिसन और कोलकाता से आए एल.एस. गाड ने तैयार किया।उस जमाने में यहां नवाबों की अदालत चलती थी।नवाबों का राज्य खत्म होने के बाद इस इमारत को पिक्चर गैलरी में तब्दील कर दिया गया।इन तस्वीरों की खास बात यह है कि यहां उपस्थित सारी पिक्चर मूविंग पिक्चर है । यानी अगर आप नवाबों की जूती को दाएं तरफ से देखेंगे तो आपको सामने दिखेगी और बाएं तरफ से देखेंगे तो आपको अपनी तरफ दिखेगी।वहीं कुछ तस्वीरों पर सूरज की किरणें और चांद की रोशनी पढ़ने से अद्भुत दृश्य बनता है जो अत्यंत ही खूबसूरत होता है।पिक्चर गैलरी में उपस्थित खंबे सितार और तबले के आकार के हैं जो देखने में अत्यंत मनोहर दिखते हैं।आप लखनऊ में पिक्चर गैलरी अवश्य देखने आ गया आपको अतीत से जोड़ देगी।
डॉ राम मनोहर लोहिया पार्क
76 एकड़ में फैला, डॉ राम मनोहर लोहिया पार्क गोमती नगर में एक लोकप्रिय पार्क है। समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया को समर्पित, पार्क में आंगन के चार डिवीजन और अलग प्रवेश द्वार हैं। इसके अलावा, इसमें मौसमी फूलों और झाड़ियों के साथ छिड़के हुए जीवंत लॉन हैं। इसका उपयोग जॉगिंग और सुबह योग कक्षाओं के लिए भी किया जाता है। डॉ.राम मनोहर लोहिया पार्क के आसपास बैठने की व्यवस्था के अलावा साफ पानी और शौचालय की सुविधा भी है। ज्यादातर वसंत और सर्दी इस पार्क की यात्रा के लिए एक बढ़िया समय है।
छत्तर मंजिल

छतर मंजिल या अम्ब्रेला पैलेस के रूप में लोकप्रिय नवाब गाजी उद्दीन हैदर द्वारा बनाया गया था और बाद में अवध के शासक और उनकी पत्नियों द्वारा इसका इस्तेमाल किया गया था। छतर मंजिल लखनऊ के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है।इसका निर्माण कार्य गजा उद्दीन हैदर ने करवाया परंतु बीच में उनकी मृत्यु हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारी नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने इसे पूरा करवाया।ऊपरी हिस्सा छतरी के आकार से प्रतीत होता है जो दूर से दिखाई देता है इसी कारण इसका नाम छतर मंजिल पड़ा।2019 में पुरातत्व विभाग के द्वारा छतर मंजिल के आसपास खुदाई कार्य चल रहा था तभी वहां 220 साल पुराना नाम सामने आया जो नवाबों के समय का प्रतीत होता है। जो 42 फीट लंबी और 11 फुट चौड़ी थी।यहां तब लखनऊ की बेगम ओं का निवास हुआ करता था।लखनऊ किसानों शौकत की वजह से अनेक व्यापारी यहां अपनी किस्मत अजमाने आया करते थे।इन्हीं यात्रियों में से एक फ्रांसीसी मेजर जनरल कार्ड मार्टिन भारत आए जो बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने लगे।वास्तु कला में महारत हासिल मार्टिन को लखनऊ में बहुत प्रसिद्धि मिली।नवाब की खास होने के कारण अनेकों कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और लखनऊ की यादगार इमारत बनवाएं।वास्तुकला की इतनी अनोखी चित्रकारी मन को अत्यंत शोभा प्रदान करती है।आजादी के पश्चात छतर मंजिल को साइंस और इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट काउंसिल को सौंप दिया गया जिसने यहां सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट का eदफ्तर खोल दिया।इस भव्य छतर मंजिल के दर्शन के लिए आप अवश्य आएं।
बेगम हजरत महल पार्क
लखनऊ के कैसरबाग में स्थित बेगम हजरत महल पार्क एक लोकप्रिय पार्क है। बच्चों के लिए झूलों और खेल के मैदान की मेजबानी, यह भीड़-पसंदीदा पिकनिक स्थल सैर, नौकरी, बुजुर्ग लाफिंग क्लब, योग और ध्यान के लिए भी एक शानदार जगह है। पार्क में बेगम हजरत महल के नाम पर एक स्मारक संरचना है, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस संगमरमर की इमारत की शुरुआत 1962 में हजरतगंज के पुराने विक्टोरिया पार्क में की गई थी। पार्क का उपयोग विभिन्न धार्मिक त्योहारों, कला प्रदर्शनियों और स्कूल कार्यक्रमों के लिए भी एक लोकप्रिय स्थल के रूप में किया जाता है। हरे-भरे हरियाली के अलावा, बेगम हजरत महल पार्क में कुछ फव्वारे, एक फूलों का बगीचा और पत्थर के रास्ते भी हैं। पार्क के पास कुछ फूड स्टॉल भी हैं। पीने का साफ पानी और शौचालय जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
नीलांश थीम पार्क
लखनऊ शहर के बाहरी इलाके में स्थित, नीलांश थीम पार्क कई मजेदार खेलों, गतिविधियों और एक विशेष वाटर पार्क की मेजबानी करता है। यह साइट कार्यक्रमों, निजी पार्टियों और समारोहों और रात भर ठहरने के लिए भी जगह उपलब्ध कराती है। इसके अलावा, पार्क में कृत्रिम रूप से निर्मित झीलों, समुद्र तटों और उद्यानों से प्रेरित भव्य सजावट भी है। नीलांश थीम पार्क कुछ बेहतरीन उत्कृष्टता की मेजबानी करता है। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सिंगल पूल वाटर पार्क के अलावा, थीम पार्क में लखनऊ का सबसे बड़ा वाटर स्लाइड भी है। यह यूपी का पहला दिन और रात वाटर पार्क भी है, इसलिए यहां भी शाम की योजना बनाने के लिए तैयार हो जाइए!
सफ़ेद बारादरी

नवाब वाजिद अली शाह द्वारा निर्मित, सफ़ेद बारादरी एक सफेद संगमरमर का महल है जिसे मूल रूप से नवाब के “महल के महल” के रूप में बनाया गया था। कैसर बाग के महाराजा महमूदाबाद में स्थित, सफेद बारादरी में अंजुमन संस्थापकों महाराजा मान सिंह और बलरामपुर के दिग्विजय सिंह की संगमरमर की मूर्तियां हैं। शुरू में क़सर-उल-अज़ा कहा जाता था, इस संरचना को आगे ब्रिटिश याचिका अदालत के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा।
सआदत अली खान का मकबरा
लखनऊ के कैसरबाग जैसे भीड़ भरे इलाके में स्थित इमारत है जो सहादत अली खा के मकबरे के नाम से जाना जाता है। इसकी भव्यता और खूबसूरती लखनऊ में स्थित अनेक इमारतों को टक्कर देती है। लखनऊ के केंद्र कैसरबाग में स्थित बेगम हजरत महल के सामने स्थित है। स्टेशन से इसकी दूरी 3.5 किलोमीटर है। शहादत अली खान अवध के छठवें सम्राट थे । बेगम खुर्शीद जादी नवाब की पसंदीदा बेगम थी नवाब के शासनकाल में ही बेगम की मृत्यु हो गई और उनको यही दफनाया गया। बाद में नवाब की भी मृत्यु हो गई नवाब के बेटे के द्वारा बनाया गया उनके पिता का मकबरा भी यहीं पर है स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार केसर बाग इलाके से लेकर दिलकुशा कोठी तक की सभी इमारतों का निर्माण सहादत अली खान के शासनकाल में हुआ।

- नवाब स्थापत्य कला के अत्यंत प्रेमी थे उनके द्वारा निर्मित इमारतों में इसकी झलक बखूबी दिखती है। परिसर को अच्छी तरह से व्यवस्थित ढंग से रखा गया है। परिसर में प्रवेश करते ही आपको दो इमारतें मिलेंगी एक सहादत अली खान की और दूसरी उनकी बेगम की। इमारतों के निर्माण कार्य में बादामी चूना ईटों का इस्तेमाल किया गया है। आप मकबरे के अंदर बनी चित्रकारी वास्तुकला को देखकर अचंभित हो जाएंगे यह अत्यंत खूबसूरत और प्रभावशाली है। अंदर मकबरे में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं जो बाहर की तरफ खुलती है। मकबरे का पर काले व सफेद संगमरमर से निर्मित है जो कि शतरंज की तरह प्रतीत होता है। गुंबद देखने में अत्यंत आकर्षित और गुलदस्ता जैसा प्रतीत होता है। आपको यहां इस मकबरे की जानकारी देने के लिए संरक्षक भी मिल जाएंगे। अतः आप लखनऊ में इस मकबरे में अवश्य आएं इसकी खूबसूरती आपके मनमोहोने के लिए काफी है।
कैसरबाग पैलेस
नवाब वाजिद अली शाह के शासन में 1848-1850 के बीच निर्मित, कैसरबाग पैलेस मुगल वास्तुकला के सबसे प्रसिद्ध स्मारकों और विदेशी उत्कृष्ट कृतियों में से एक है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की अवध क्षेत्र में स्थित लखनऊ पैलेस अवध के अंतिम शासक नवाब वाजिद अली शाह के द्वारा सन 1847 में बनवाया गया था।

नवाब इसे दुनिया का आठवां अजूबा बनाना चाहते थे यह उनके सपनों का प्रोजेक्ट था। ब्रिटिश सरकार ने उस समय इस महल को नुकसान पहुंचाया जब उन्हें लगा यह लोगों की मध्य अपनी पकड़ बना रहे हैं। तत्पश्चात वाजिद अली शाह अपनी पत्नी के साथ कोलकाता चले गए परिणाम स्वरूप महल का एक बड़े हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया। महल के अंदर स्थित चित्रकारी मूर्तियां मुगल शैली और यूरोपियन शैली को दर्शाती है। इस महल में महिलाओं के लिए शाही चेंबर बनवाए गए हैं इससे यह प्रतीत होता है कि तब के जमाने में महिलाओं का सम्मान होता था। राजसी 12 दरवाजे वाली इमारते महलों के बीचो बीच खड़ी है। महलों में उपस्थित चित्रकारी मूर्तियां आपको सोचने में मजबूर कर देगी की इसे किस प्रकार बनाया गया है। आप लखनऊ में इसका दीदार करने अवश्य आएं।
सिकंदर बाग

सिकंदर बाग एक प्राचीन शैली की आलीशान हवेली और 1800 के दशक में बना एक ब्रैकेटिंग गार्डन है। अशोक रोड पर स्थित, यहां स्थित यह हरियाली भारत में अंतिम मुगल उद्यान के रूप में जानी जाती है। अवध के अंतिम नवाब, नवाब वाजिद अली खान द्वारा निर्मित, सिकंदर बाग 1947 के बाद एक वनस्पति उद्यान और राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान का स्थल बन गया। पार्क ने 1857 की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक स्थल के रूप में भी काम किया।
आम्रपाली वाटर पार्क
2002 में शुरू किया गया, आम्रपाली वाटर पार्क परिवारों और दोस्तों के लिए एक साहसिक दिन के लिए एक शीर्ष स्थान है। पार्क क्षेत्र में सबसे अधिक सवारी का दावा करता है। संपत्ति में कॉटेज, भोजनालय और एक बच्चों के खेलने का क्षेत्र भी है। वाइब में पंप करने के लिए इन-हाउस डीजे के साथ, एक्वा ट्रेल, क्रेज़ी क्रूज़, ब्लैक होल और फ्लोट साइड जैसी शीर्ष स्लाइड्स हैं। यहां की कुछ प्रमुख गतिविधियों में स्विमिंग और स्प्लैश पूल, मेरी गो राउंड, रोलर कोस्टर राइड और वॉटर स्लाइड शामिल हैं। यहां की एक अनोखी गतिविधि ऊंट की सवारी है
फोर सीजन्स फन सिटी
फोर सीजन्स फन सिटी लखनऊ के रायबरेली रोड पर स्थित है। ढेर सारी रोमांचकारी सवारी, स्विमिंग पूल, रेन डांस, ट्यूब स्लाइड आदि के अलावा, पार्क का मुख्य आकर्षण स्नो पार्क है जहाँ आप कृत्रिम बर्फ का अनुभव कर सकते हैं। पार्क में एक अद्भुत डीजे और साउंड सिस्टम भी है।
फन विलेज वाटर पार्क एंड रिजॉर्ट
फन विलेज वाटर पार्क एंड रिजॉर्ट लखनऊ-इलाहाबाद हाईवे पर स्थित है और इसमें बहुत सारे रोमांचक और रोमांचकारी पानी और नियमित सवारी हैं। पार्क में परिसर के भीतर एक रिसॉर्ट भी है जहां आप आराम कर सकते हैं और शहर के जीवन की हलचल से आराम कर सकते हैं।
स्कॉर्पियो क्लब

लखनऊ में बेहटा कुर्सी रोड पर स्थित, स्कॉर्पियो क्लब या स्कॉर्पियो वाटर पार्क ठंडे नीले पानी के बीच गर्मी की गर्मी को मात देने का एक सही तरीका है। आप अपने एड्रेनालाईन को सभी रोमांचकारी और साहसिक सवारी के साथ प्राप्त कर सकते हैं। संपत्ति में आपकी भूख की पीड़ा को तृप्त करने के लिए एक बढ़िया भोजन रेस्तरां भी है।
लखनऊ में धार्मिक सौहार्द
लखनऊ में वैसे तो सभी धर्मों के लोग सौहार्द एवं सद्भाव से रहते हैं, किंतु हिन्दुओं एवं मुस्लिमों का बाहुल्य है। यहां सभी धर्मों के अर्चनास्थल भी इस ही अनुपात में हैं। हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों में हनुमान सेतु मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, अलीगंज का हनुमान मंदिर, भूतनाथ मंदिर, इंदिरानगर, चंद्रिका देवी मंदिर, नैमिषारण्य तीर्थ और रामकृष्ण मठ, निरालानगर हैं। यहां कई बड़ी एवं पुरानी मस्जिदें भी हैं। इनमें लक्ष्मण टीला मस्जिद, इमामबाड़ा मस्जिद एवं ईदगाह प्रमुख हैं। प्रमुख गिरिजाघरों में कैथेड्रल चर्च, हज़रतगंज, इंदिरानगर (सी ब्लॉक) चर्च, सुभाष मार्ग पर सेंट पाउल्स चर्च एवं असेंबली ऑफ बिलीवर्स चर्च हैं। यहां हिन्दू त्यौहारों में होली, दीपावली, दुर्गा पूजा एवं दशहरा और ढेरों अन्य त्यौहार जहां हर्षोल्लास से मनाये जाते हैं, वहीं ईद और बारावफात तथा मुहर्रम के ताजिये भी फीके नहीं होते। साम्प्रदायिक सौहार्द यहां की विशेषता है। यहां दशहरे पर रावण के पुतले बनाने वाले अनेकों मुस्लिम एवं ताजिये बनाने वाले अनेकों हिन्दू कारीगर हैं।
आवागमन
वायुमार्ग
लखनऊ का अमौसी अंतर्राष्ट्रीय विमान क्षेत्र दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर, जयपुर, पुणे, भुवनेश्वर, गुवाहाटी और अहमदाबाद से प्रतिदिन सीधी फ्लाइट द्वारा जुड़ा हुआ है।
रेलमार्ग
चारबाग रेलवे जंक्शन भारत के प्रमुख शहरों से अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से लखनऊ मेल और शताब्दी एक्सप्रेस, मुम्बई से पुष्पक एक्सप्रेस, कोलकाता से दून एक्स्प्रेस और हावड़ा एक्स्प्रेस 3050 के माध्यम से लखनऊ पहुंचा जा सकता है। चारबाग स्टेशन के अलावा लखनऊ जिले में कई अन्य स्टेशन भी हैं:-
• 2 किलोमीटर दूर ऐशबाग रेलवे स्टेशन,
• 5 किलोमीटर पर लखनऊ सिटी रेलवे स्टेशन,
• 7 किलोमीटर पर आलमनगर रेलवे स्टेशन,
• 11 किलोमीटर पर बादशाहनगर रेलवे स्टेशन तथा
• अमौसी रेलवे स्टेशन हैं।
इसके अतिरिक्त मल्हौर में 13 कि.मी, गोमती नगर में 15 कि.मी, काकोरी 15 कि.मी, मोहनलालगंज11 कि.मी, हरौनी 25 कि.मी, मलिहाबाद 26 कि.मी, सफेदाबाद 26 कि.मी, निगोहाँ 35 कि.मी, बाराबंकी जंक्शन 35 कि.मी, अजगैन 42 कि.मी, बछरावां 48 कि.मी, संडीला 53 कि.मी, उन्नाव जंक्शन 51 कि.मी तथा बीघापुर 64 कि.मी पर स्थित हैं। इस प्रकार रेल यातायात लखनऊ को अनेक छोटे छोटे गाँवों और कस्बों से जोड़ता है।
सड़क मार्ग
राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से दिल्ली से सीधे लखनऊ पहुंचा जा सकता है। लखनऊ का 2 दिल्ली को आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी और कानपुर के रास्ते कोलकाता से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 25 झांसी को जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 28 मुजफ्फरपुर से, राष्ट्रीय राजमार्ग 56 वाराणसी से जोड़ते हैं।
लखनऊ में होटल https://www.tripadvisor.in/Search?q=lucknow&searchSessionId=A6BF6AF2959DE86B0CF27FF18DC388B81625908359580ssid&searchNearby=false&geo=297684&sid=6CC1BBA6607A4AAD92C6337E56B9C0761625908371583&blockRedirect=true&ssrc=h&rf=1 लखनऊ में रेस्टोरेंट्स https://www.tripadvisor.in/Search?q=lucknow&searchSessionId=A6BF6AF2959DE86B0CF27FF18DC388B81625908359580ssid&searchNearby=false&geo=297684&sid=6CC1BBA6607A4AAD92C6337E56B9C0761625908371583&blockRedirect=true&ssrc=e&rf=8 घूमने की प्रसिद्ध जगह https://www.tripadvisor.in/Search?q=lucknow&searchSessionId=A6BF6AF2959DE86B0CF27FF18DC388B81625908359580ssid&searchNearby=false&geo=297684&sid=6CC1BBA6607A4AAD92C6337E56B9C0761625908371583&blockRedirect=true&ssrc=A&rf=10 लाज़वाब स्ट्रीट फूड https://www.tripadvisor.in/Restaurants-g297684-zfp16-Lucknow_Lucknow_District_Uttar_Pradesh.html लखनऊ में पार्क https://www.tripadvisor.in/Attractions-g297684-Activities-c57-t70-Lucknow_Lucknow_District_Uttar_Pradesh.html लखनऊ में हॉस्पिटल https://www.medicineindia.org/hospitals-in-city/lucknow-uttar-pradesh
AUTHOR- ABHAY KUMAR MISHRA